A Church is not a temple for saints, but rather a Hospital for sinners.

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Friday, November 26, 2010

TONGUE

                                                  नरक कुंड की आग 

"जब हम अपने वश में करने के लिये घोड़ों के मुंह में लगाम लगाते हैं,   तो हम उन की सारी देह को भी फेर सकते हैं।"
"देखो, जहाज भी, यद्यपि ऐसे बड़े होते हैं, और प्रचंड वायु से चलाए जाते हैं, तौभी एक छोटी सी पतवार के द्वारा मांझी की इच्छा के अनुसार घुमाए जाते हैं।"
 

"वैसे ही जीभ भी एक छोटा सा अंग है और बड़ी बड़ी डींगे मारती हैः       देखो, थोड़ी सी आग से कितने बड़े वन में आग लग जाती है।"
"जीभ भी एक आग हैः जीभ हमारे अंगों में अधर्म का एक लोक है और सारी देह पर कलंक लगाती है, और भवचक्र में आग लगा देती है और नरक कुंड की आग से जलती रहती है"
"क्योंकि हर प्रकार के बन-पशु, पक्षी, और रेंगनेवाले जन्तु और जलचर तो मनुष्य जाति के वश में हो सकते हैं और हो भी गए हैं।"
 
"पर जीभ को मनुष्यों में से कोई वश में नहीं कर सकता; वह एक ऐसी बला है जो कभी रूकती ही नहीं; वह प्राण नाशक विष से भरी हुई है।
इसी से हम प्रभु और पिता की स्तुति करते हैं; और इसी से मनुष्यों को जो परमेश्वर के स्वरूप में उत्पन्न हुए हैं श्राप देते हैं।"
 
            "एक ही मुंह से धन्यवाद और श्राप दोनों निकलते हैं।
                     हे मेरे भाइयों, ऐसा नही होना चाहिए।"
 
"क्या सोते के एक ही मुंह से मीठा और खारा जल दोनों निकलता है? हे मेरे भाइयों, क्या अंजीर के पेड़ में जैतून, या दाख की लता में अंजीर लग सकते हैं? वैसे ही खारे सोते से मीठा पानी नहीं निकल सकता।।"


    Matthew 12:34----37
 "तुम बुरे होकर क्योंकर अच्छी बातें कह सकते हो? क्योंकि जो मन में भरा है, वही मुंह पर आता है।"
 

"भला, मनुष्य मन के भले भंडार से भली बातें निकालता है; और     बुरा मनुष्य बुरे भंडार से बुरी बातें निकालता है।"
 

"और मै तुम से कहता हूं, कि जो जो निकम्मी बातें मनुष्य कहेंगे, न्याय के दिन हर एक बात का लेखा देंगे।"
 

"क्योंकि तू अपनी बातों के कारण निर्दोष और अपनी बातों ही के कारण दोषी ठहराया जाएगा।।"




                       एक परिवर्तित जीभ के विशेष गुण :-      आज भी प्रभु अपने पवित्र आत्मा को हमारे मनों को अपने प्रेम से भरने के लिये भेजता है। जब हमारे ह्रदय इस प्रेम के द्वारा स्पर्श किये जाते हैं तब हमारी जीभें भी ऐसी जीभों मे परिवर्तित हो जाती हैं जो दूसरो को ईश्वरीय आशीषें मुफत में देती हैं।  
(1) कार्य में परिवर्तन

पवित्र आत्मा से भरे जाने के एक अनुभव के पश्चात् स्वाभविक जीभ जो अभी तक साधारण बातों के फैलाने में उपयोग मे लाई गयी थी अब ईश्वरीय कार्या में तल्लीन हो जाती है।
   
  यह प्रभु के सामने विनतियां एवं निवेदन संलग्न हो जाती है(भजन संहिता 39:3)
 
पूरे दिन यह उसकी धार्मिकता का बखान करती और उसकी स्तुती करती है(भजन संहिता35:28)

सब समय यह उसके वचन बोलती - इसे विस्तार से समझाती है (भजन संहिता119:172)

सत्य का वचन सदैव इसके साथ बना रहेगा (भजन संहिता119:43)।
प्रभु का अभिषेक प्राप्त सेवक दाउद ठीक ऐसे ही अनुभव का निम्न रुप से बताता है:-

’’यहोवा का आत्मा मुझ मे होकर बोला, और उसी का वचन मेरी जीभ पर था।’’ 2शमुएल 23:2

क्या हमारे दयालू प्रभु यीशू की जीभ ने जो कल्पना से बाहर पवित्र आत्मा से भरा था जैसा कि प्रेरितो के काम 10:38; तथा यहुन्ना 3:34 मे लिखा है केवल कृपालु वच नही न बोले थे? लूका 4:22)
(2)सामर्थ में बदलाव

एक दिव्य अनुभव के बाद, समान्य-सरल लोंगों की जीभें भी उनमें जो विद्वान हैं, में परिवर्तित हो जाती हैं।इसी कारण, प्रेरित पौलुस, जबकि वह अपनी सामर्थ के विषय में बता रहा थे, कहते है, ‘‘हम उनके मध्य बुद्धी की बातें बोलते हैं जो कि परिपक्व हैं’’ (1कुरि0 2:6)।
यह एक अधिकारिक जीभ के रुप में बदल जाती है (यशायाह 54:17)।
परमेश्वर का पुत्र, यीशू भी ‘एक अधिकार प्राप्त’ के रुप मे बोला था और जिन लोंगों ने उसकी बातें सुनी वे चकित थे,जैसा कि मत्ती 7:28,29 में लिखा है।

(3) दिखाई देने मे बदलाव

एक परिवर्तित
जीभ को वर्णन करने के लिये पवित्र शास्त्र मे अति उत्तम शीर्षक दिये गये हैं।
सर्वोत्तम चान्दी (नीतिवचन 10:20)
स्वास्थ्यवर्धक दवा
(नीतिवचन12:18)
जीवन का वृक्ष (नीतिवचन15:4)
कोमल वचन हड्डी को भी तोड़ देता है (नीतिवचन 25:15)
'अनजानी जीभें' या 'नई जीभें' केवल उन जीभों पर उतरती हैं जो पूर्ण रुप से पवित्र आत्मा की सामर्थ से परिवर्तित की जा चुकी हैं- जो उनके परिवर्तित अनुभव का चिन्ह है।  

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